दो मीटर कपडा नहीं, पापा का प्यार है वो;
पहन के लगता है जैसे पापा ने गले लगाया हो |
सिर्फ कपडा नहीं, जुडी है इससे भावनाएं;
रखे है अपने अंदर अनेकों किस्से छिपाये |
उस सलेटी रंग में बसी है खुशबु आपकी;
रखी है संभाल के, जैसे नसीहत आपकी |
उसकी हर एक सलवट में बसा है आपका प्यार;
हर रंग से घुल-मिल जाना, जैसे आपके संस्कार |
सादा है रंग, ठीक आपके विचारों की तरह;
देती है निस्वार्थ प्यार, आपके स्वभाव की तरह |
आपके ख्यालों से मिलता है उसका रंग;
है भले ही हल्का, पर मन में भर देता है उमंग |
जैसे एक-एक धागे का हो आपसे संपर्क;
मिलता है इससे स्नेह बिना किसी शर्त |
बिन बोले ही बहुत कुछ कहती है;
आप ही की तरह,
आपकी कमीज़ भी मुस्कुराती है|
आपकी ये निशानी, आपकी ही तरह सादी ;
है एक कमीज़, पर बड़ी ऊंची है इसकी उपाधि |
मार और प्यार दोनों याद दिलाती है ;
मेरे पापा की कमीज़ आज भी मेरी अलमारी में रहती है |
✍🏻 अमित
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Very nicely written. Truly depicts a strong relationship between a father and a child.
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Thanks Shakti !
Great to hear that you liked reading it.
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पापा की कमीज ने वाक़ई में छू लिया.. अच्छा प्रयास 👍
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धन्यवाद दीपक।
मुझे ख़ुशी है के आपको कविता पसंद आयी ।
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बहुत सुंदर कविता।
यादों और भावनाओं को शब्दों में बहुत सुंदर तरीके से बुना है।
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धन्यवाद सुमिता ! ☺️
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Heart touching 😊😊
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Thank you Shweta! ☺️
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Heart melting ,miss you papa!
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